क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में
क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में
क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में,
बहते हुए पानी में, तेवर भी तो उसका है,
तू नूह का बेटा है, कुछ बस में नहीं तेरे,
कश्ती भी तो उसकी है, लंगर भी तो उसका है…
सूरज के निकलने से, तारों के बिखरने तक,
मौजों के थपेड़ों से, तूफां के ठहरने तक,
गुंचों के महकने से, कलियों के चटखने तक,
क्या तूने नहीं देखा, पैक़र भी तो उसका है…
अज़मत से हक़ीक़त से, मुंह मोड़ना चाहा था,
कुछ हाथियों वालों ने घर तोड़ना चाहा था,
क्या तूने नहीं देखा ? कमज़ोर परिंदों ने,
किस तरह हिफाज़त की, वह घर भी तो उसका है…
क्या तूने नहीं देखा ? क्या देख लिया तूने ?
उसके ही इशारे पर, ये सारे तमाशे हैं,
वह धूप का मालिक है, वह छाँव का खालिक़ है,
आँखें भी तो उसकी हैं, मंज़र भी तो उसका है…
क्या तूने नहीं देखा? वह खाक़ के ज़र्रों से,
सूरज भी बनाता है, तारे भी बनाता है,
मैं क्या हूं, मेरा क्या है, मिट्टी ही समझ मुझको,
पत्थर ही सही लेकिन, पत्थर भी तो उसका है.
शायरी मित्रा का मुख्य उद्देश्य है आप सभी तक अच्छी से अच्छी शायरियां और दिल को छू जाने वाली कविताए और ढेरो सारे जोक्स को आप तक पहुंचना है जो आपके दिल को अच्छा लगे। धन्यवाद....।
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