अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो,
जान थोड़ी है,
ये सब धुआँ है, कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं
लेकिन हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
शायरी मित्रा का मुख्य उद्देश्य है आप सभी तक अच्छी से अच्छी शायरियां और दिल को छू जाने वाली कविताए और ढेरो सारे जोक्स को आप तक पहुंचना है जो आपके दिल को अच्छा लगे। धन्यवाद....।
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