उफ़ यह संग -ऐ -मर्मर सा तराशा हुआ शफाफ बदन,
देखने वाले तुझे ताज महल कहते है
कभी कभी जीतने के लिए कुछ हारना भी परता है
और हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते है….
बाबूजी ने कहा गाओं छोड़ दो ,
सब ने कहा पारो को छोड़ दो ,
पारो ने कहा शराब छोड़ दो ,
आज तुमने कह दिया हवेली छोड़ दो,
एक दिन आएगा जब वह कहेंगे,
दुनिया ही छोड़ दो …
क्यों बनाती हो तुम रेत के महल,
जिसे खुद ही तोड़ डालोगी तुम,
आज कहती हो इस दिलजले से प्यार है तुम्हे,
कल तो मेरा नाम तक भूल जाओगी तुम…
तूफ़ान में बहा है न यह शोलों में जला हैं,
घयाल हुआ तीरों से ना खंजर से कटा हैं,
कहते है जिससे इश्क क़यामत है, बला है ,
टकराया जो भी इससे वो दुनिया से मिटा है |
फलक के तीर का क्या देख निशाना था,
उधर थी बिजली इधर मेरा आशियाना था,
पहुँच रही थी किनारे पे कश्ती-ए-उम्मीद
उस ही वक्त इस तूफ़ान को भी आना था…
तुमसा कोई और इस ज़मीन पे हुआ,
तो रब से शिकायत होगी,
तुम्हें चाहने वाला कोई और हुआ,
तो क़यामत से पहले क़यामत होगी..
उन्हें हुसमे शिकायत है कि,
हम हर किसी को देख कर मुस्कुराते हैं,
नासमझ है वो न समझे कि हमें तो हर चेहरे में,
वही नज़र आते हैं…
ना जागते हुए ख्वाब देखा करों
ना चाहों उससे जिसे पा न सकों
प्यार कहाँ किसी का पूरा होता हैं,
प्यार का पहला अक्षर अधूरा होता हैं…
मोहब्बत रंग लाती हैं,…
जब दिल से दिल मिलते हैं,
मुश्किल तो यह है कि दिल,
बड़ी मुश्किल से मिलते हैं…